भोपाल
अक्सर लोग स्वास्थ्य बीमा इसलिए कराते हैं,ताकि जब कभी भी बीमारी उन्हें घेरे तो इलाज के लिए उन्हें आर्थिक तौर पर परेशान ना होना पड़े। बीमा उपचार के दौरान बड़ा मददगार साबित होता है, लेकिन कई बार बीमा कंपनी अलग-अलग बहाना बनाकर बीमा राशि देने से इन्कार कर देती है। ऐसे ही मामले में जिला उपभोक्ता आयोग ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के एक फैसले का उल्लेख कर कहा कि बीमा कंपनी बीमारियों के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाने के लिए दावे को अस्वीकार कर सकती है, लेकिन इसे प्रमाणित करने की जिम्मेदारी खुद बीमा कंपनी की है, इसलिए उपभोक्ता क्लेम का अधिकारी है। मामले में आयोग ने क्लेम की राशि पांच लाख रुपये सात फीसद ब्याज की दर से और मानसिक क्षतिपूर्ति राशि 15 हजार रुपये दो माह में देने के आदेश दिए हैं।
यह है पूरा मामला
कोलार रोड स्थित मंदाकिनी कालोनी निवासी स्व. देवदास सैनी की पत्नी नुरूननिशा और बेटी सीमा सैनी ने 29 जून 2024 को केयर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ जिला उपभोक्ता आयोग में याचिका लगाई थी। शिकायत की है कि कंपनी के बीमा एजेंट अंकित सोनी ने साल 2020 में उनके घर आकर मृतक उपभोक्ता को बीमा लेने के लिए राजी किया। उन्हें कहा गया कि यदि कोई बीमारी हुई तो आपको इलाज में एक भी रुपया खर्च नहीं करना पड़ेगा। इस आश्वासन के साथ उपभोक्ता का पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा करा दिया। अगले साल भी उपभोक्ता ने इसे 15,450 रुपये का भुगतान कर रिन्यू किया।
बीमा अवधि में 23 सितंबर 2021 को तबीयत खराब होने पर देवदास सैनी को भोपाल के निजी अस्पताल में दिखाया तो यहां उन्हें निमोनिया बताकर दवाई देकर भेज दिया गया। तबीयत फिर बिगड़ने पर डाक्टर ने किडनी और यूरिन में इंफेक्शन के कारण निमोनिया होने पर भर्ती होने के लिए कहा। इसकी सूचना बीमा कंपनी को दी और अस्पताल द्वारा दस्तावेज भी भेजे गए। बीमा का पैसा न मिलने पर परिवार ने उधार लेकर इलाज जारी रखा, लेकिन जनवरी 2022 को उनकी मृत्यु हो गई। परिवार ने आवेदन में जानकारी दी कि उपभोक्ता के इलाज में कुल छह लाख 90 हजार रुपये का खर्च हुआ।
बीमा कंपनी का तर्क
बीमा कंपनी ने तर्क रखा कि उपभोक्ता को पहले से हाई बीपी की बीमारी थी। इसके संबंध में चार वर्ष की वेटिंग पीरियड का एक्सक्लूजन क्लाज बीमा पालिसी में डाला गया है और इसी आधार पर क्लेम खारिज किया गया है। हालांकि, देवदास सैनी की मेडिकल हिस्ट्री में कहीं भी हाई बीपी का जिक्र नहीं था। इलाज के दौरान भी पूर्व में हाई बीपी का जिक्र किसी भी अस्पताल ने नहीं किया था। ऐसे में बीमा कंपनी इस बात को साबित नहीं कर पाई।


